यदि प्रश्न-पत्र 1 के बारे में बात करें तो आशानुरूप प्रश्नों का कठिनाई का स्तर लगभग पिछले वर्ष के बराबर ही रहा, कुछ उम्मीदवारों को पिछले वर्ष की तुलना में अपेक्षाकृत आसान लगा तो कुछ को पिछले वर्ष की समान तर्ज पर.
प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्न-पत्र 1 (सामान्य अध्ययन) में कुछ पारंपरिक क्षेत्रों जैसे इतिहास, राजनीति विज्ञानं और भूगोल आदि पर अनेक प्रश्नों के कारण अधिकांश उम्मीदवारों के चेहरे पर मुस्कान दिखाई दी. संयत होकर प्रयास करना किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा के वस्तुनिष्ठ परीक्षण में सहायक होता है, जिसका सीधा-सीधा उपयोग यहाँ दिखाई दिया.
कई प्रश्न परीक्षा स्तर को दर्शाते हुए बहुत चतुराई से पूछे गए है जहाँ कम-से-कम दो विकल्प बहुत ही करीब नजर आए. इन प्रश्नों में कुछ एक तो ऐसे है कि केवल एक शब्द ही कुंजी है, जो उम्मीदवारों के लिए सही विकल्प चुनने का निर्णय लेने में कठिनाइयाँ उत्पन्न करते है. इसीलिए कहा जाता है कि प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी में मूलभूत अवधारणाओं एवं वैचारिक स्पष्टता की जरूरत है.
साथ ही, प्रश्न को सही ढंग से समझते हुए सही विकल्प चुनने की जरूरत होती है.
इन प्रश्न-पत्रों में जो कुछ भी दिखा-समझा, सार्थक लगता है
प्रश्न पत्र में पूछे गए प्रश्नों की बात करें तो राजनीतिक व्यवस्था/संविधान सम्बंधित प्रश्नों की प्रवृति बढती हुई नजर आई थी. भूगोल, पर्यावरण और पारिस्थितिकी से सम्बंधित प्रश्नों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई. इतिहास और भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष से सम्बन्धी प्रश्न भी प्रचुर मात्रा में थे और अर्थव्यवस्था के प्रश्न भी कोई बड़ी कठिनाई नहीं प्रस्तुत कर रहे थे.
सरकार की नई नीतियों, पहल और ऐसे ही कुछ अवलोकन आधारित प्रश्नों के द्वारा उम्मीदवार की समसामयिकी पर पकड़ की भी जांच की गई.
खासकर, ऐसे उम्मीदवार जो नियमित रूप से समाचार पत्रों का अध्ययन करते है, पत्र-पत्रिकाओं में छपे समसामयिक, समकालीन मुद्दों पर अपनी राय बना पाते है, उन्हें विशेषकर कोई कठिनाई उत्पन्न नहीं हुई होगी.
प्रश्न पत्र I क्या संकेत देता है?
प्रश्न-पत्र 1 दर्शाता है कि प्रश्न-पत्र बनाने में किस प्रकार का प्रयास UPSC करती है. यह प्रश्न पत्र दो दृष्टिकोणों के विलय का अदभुत उदहारण है, इस प्रश्न पत्र में पारंपरिक एवं समकालीन दृष्टिकोणों दोनों में से मजबूत पक्ष लेकर एक संतुलित प्रश्न पत्र प्रस्तुत किया गया है.
इस प्रश्न-पत्र के बाद एक बार फिर परीक्षा हेतु एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने की रणनीति को बल मिला है इसमें अधिकाँश प्रश्न अवधारणाओं पर आधारित है या फिर वैचारिक एवं अभिप्रयोग पर आधारित मुख्य परीक्षोंमुख तैयारी में विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है और इस प्रकार की तैयारी प्रारंभिक परीक्षा में भी कारगर साबित हुई होगी.
यह उम्मीदवारों की जागरूकता और समझ के बारे में है और मुझे लगता है कि किसी भी वर्ग विशेष के पक्ष में नहीं था और यहाँ तक कि हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों को भी कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई होगी.
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